०२.१२.२०१४

३ बार ॐ जपने के बाद वैलेरी कहती हैं, “आज २ दिसंबर है और हम यहाँ परमात्मा के नाम पर इकट्ठा हुए हैं और हम लौकिक साईं बाबा का आह्वान करते हैं”|

❝ मैं यहाँ हूँ| और यहाँ आकर बहुत प्रसन्न हूँ| हमेशा की तरह – मैं यहाँ प्रतीक्षा कर रहा था – प्रिय महिलाओं को बातें करना बहुत पसंद है- परन्तु कोई बात नहीं – मैंने पहले भी इस को प्रोत्साहित किया है और अब भी कर रहा हूँ| मैं सहज ही आपसे परिहास कर रहा था|

एक कहावत है कि “महिलायें बहुत बातें करती हैं”, परन्तु मैं इससे असहमत हूँ| मैं एक पुरुष हूँ (यदि आप कहें); इस समय मैं आपके समक्ष पुरुष रूप में प्रस्तुत हूँ – वास्तव में मैं उभयलिंगी हूँ – जो नर या मादा कुछ भी हो सकता है|

इसका अनुभव आपको तभी हो सकता है जब आपके भीतर देवदूतों सामान जागृति हो जाए| यह दोनों लिंगों में से कुछ भी हो सकता है… क्योंकि एक सही संतुलन बनाने के लिए दोनों की आवश्यकता है|

एक बार एक ऐसे पोप की चर्चा हुई थी, जिनके पास एक गृहणी सामान सहायक था – किन्तु उसकी आवश्यकता ऊर्जा को संगठित कर बलवान बनाने के लिए थी…. तो मैं यह कह रहा हूँ कि नारी-ऊर्जा अत्यधिक शक्तिशाली है| और इसको इस गृह पर अत्यंत सुनवाने की आवश्यकता है| इस पर विशेषतः पुरुष ध्यान नहीं देते|

सम्भवतः भय के कारण …. भय ही सब के ऊपर छा जाएगा – परन्तु ऐसा नहीं है …. क्योंकि महिलाओं की नारी ऊर्जा सिर्फ लालन पालन करना जानती है – वे देख रेख करती हैं – वे किसी पर हावी नहीं होना चाहतीं हैं – वे सिर्फ देखभाल करना चाहती हैं|

वे कुछ चीज़ों के बारे में बहुत दृढ़ता से महसूस करती हैं … क्योंकि विशेषतः अपने बच्चों के प्रति उनके भीतर एक रक्षक की भावना होती है … और अपने बच्चों को संकट में महसूस कर, वे और भी बलशाली हो जाती हैं|

यहीं से तो शक्ति आती है – और यही बात पुरुषों को थोड़ा संकट महसूस करवाती है| किन्तु इससे उनको कोई भी संकट महसूस नहीं होना चाहिए|

बस आवश्यकता है तो इतनी सी, कि सब आपस में बात करें और एक दुसरे को समझ पाएं ताकि तालमेल बैठा सके| एक बार तालमेल बैठ गया तो अन्योन्यक्रिया अपने आप होने लगेगी…राजनैतिक और विश्व नेतृत्व स्तर पर … भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से आते हुए, पुरुष व महिलाएं आपस में बड़ी सावधानी और परिज्ञान के साथ विचार विमर्श कर सकते हैं …. परन्तु दोनों की आवश्यकता है इस गृह पर शांति का अधिपत्य लाने के लिए|

यही हमारा सुझाव है … कि महिलाओं को सुना जाए और उन्हें शक्तिशाली ओहदे पर नियुक्ति की जाए जिस से वे अपनी बुद्धिमता, सोचने का तरीका व परेशानियों का हल निकालने का तरीका दिखा सकें … यह अत्यंत आवश्यक है|

ज्यादातर महिलायें न तो भागना चाहती हैं और न ही युद्ध चाहती हैं| और इसकी – और इस को सुनने की ही आवश्यकता है … … …वे सिर्फ रक्षा करना चाहती हैं – और इसी को सुनने की आवश्यकता है|

वे केवल प्रेम और स्नेह के साथ देखभाल करने के लिए चाहते हैं – और यह बात भी सुनी जाने की जरूरत है ।

क्योंकि इन सब बातों से, पृथ्वी को सबसे उच्चतम राजनीतिक निर्णयों के साथ अनुकूलित किया जा सकता है … और फिर पृथ्वी, प्रेम, करुणा और शांति की ऊर्जा के अनुकूल हो जायेगी |

आपको ऐसा प्रतीत हो रहा होगा, कि पुरुष और महिलाओं के बीच मतभेदों के बारे में बात कर के मैं स्वयं युद्ध पैदा कर रहा हूँ…. किन्तु इस पर विचार विमर्श तो हमेशा चलता रहेगा| मैं आशा करता हूँ कि यह ऐसा ही हो| जैसा कि मैंने कहा है, सभी स्तरों पर चर्चा की आवश्यकता है| सभी स्तरों पर समझ की आवश्यकता है… क्योंकि समझ यदि व्यक्त किया जाए तो किसी एक का दृष्टिकोण ही है| किन्तु, यदि इसे दुसरे दृष्टिकोण के सुना जाए – तो उनके विचार और भावना समझने में मदद मिलती है – यही महत्त्वपूर्ण है|

यह सब सिर्फ यही तो है – सब के दृष्टिकोण को समझना| मेरा बात करते रहने का कोई इरादा नहीं है… क्योंकि इस बात का महिलाओं पर ही आरोप लगता है… और पुरुष होने के नाते, मैं भी उनके साथ वही कर रहा हूँ|

मैं यहाँ मज़ाक कर रहा हूँ … यह वास्तव में संचार ही है – इसलिए बहुत ज्यादा बात करने पर कोई धारणा नहीं बनानी चाहिए – क्योंकि संचार ही एक दुसरे को समझने में मदद करती है| और वहाँ से, प्रेम और करुणा विकसित हो सकते हैं|

मैं उन सब को धन्यवाद देना चाहूंगा जिन्होंने मुझे पत्र भेजे हैं … … जानिये कि ये मुझे मिल गए हैं और यह मैंने इन्हें पढ़ लिया है; और मैं उनको अपना आशीवाद भेजता हूँ |

मैं आपको आशीर्वाद देता हूँ मेरे बच्चों, मुझे यहाँ पर अपनी बात रखवाने के लिए धन्यवाद|
मैं, परमात्मा, आपको आशीर्वाद देता हूँ|


आप लौकिक साई बाबा का प्रसारण यहाँ सुन सकते हैं:

यह एक 4:92 एमबी की एमपी ३ फाइल है, बजाने का समय 5:22′ है

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परिशिष्ट

हम कुछ देर के लिये बातें कर रहे थे तो मेरी आरामकुर्सी के बगल में रखी मंदिर की घंटी अपने आप ही बजने लगी| हम समझ गए कि लौकिक साई बाबा संकेत दे रहे हैं कि उनके संचरण का समय हो चला है|