ध्यान

सामान्य मासिक संचरण से पूर्व, ०८ अगस्त २०१३ को, लौकिक साई बाबा ने वैलेरी को निम्नलिखित ध्यान-योग दिया|


आप लौकिक साईं बाबा द्वारा दिया गया ध्यान-योग यहाँ सुन सकते हैं:
 

 

ध्यान-योग की प्रतिलिपि

हम अपने आप को इस प्रकार देख रहें हैं – हम सब एक साथ, प्रकाश के गोलाकार घेरे में संलग्न हैं – अपनी चेतना को ऊपर उठाते हुए और अपनी आँखों को पीछे की तरफ करते हुए, ऊपर की ओर इस प्रकार से देखें मानो बादलों के पार ब्रह्मांड को देख रहे हों| आँखों पर बहुत जोर न लगायें बस इतना ही, कि आप को महसूस हो आप ऊपर और बहार की ओर देख रहें हैं|

हम प्रकाश की दुनिया, सार्वलौकिक प्रकाश एवं सारी सृष्टि के स्रोत के साथ संलग्न हो रहे हैं और हम देवदूतों से सहायता की प्रार्थना करते हैं| देवदूत सदैव हमारे साथ होते हैं, परन्तु अब हम सचेत अवस्था में उनसे जुड़ने का प्रयास कर रहे हैं |

हम महसूस कर पा रहे हैं कि प्रकाश, पिरामिड के शिखर से निकलता हुआ नीचे की ओर आ रहा है और हमारे मष्तिस्क को भर देता है और फिर हमारी गर्दन, कंधे, भुजाएँ, हाथ, छाती, पीठ, कमर, पेट, नितम्बों और हमारे जांघों से होता हुआ प्रकाश हमारे घुटने, अग्र जंघा, पिंडली, टखने, पैर, पैरों के तलवों और पंजों से गुज़रता हुआ, चारों ओर चक्करदार रूप में घूमता हुआ बाहर निकल कर प्रकाश की दुनिया में वापस चला जाता है जिससे यह प्रतीत होता है जैसे हम प्रकाश के एक लौकिक अंडे में बैठे हैं|

यह गतिविधि एक नदी की तरह है जो, प्रकाश की दुनिया से नीचे की ओर अग्रसर होती है, हमारे शरीर से होती हुई, पैरों के रास्ते बहार निकलती है और फिर प्रकाश की दुनिया में वापस चली जाती है – हमारे चारों तरफ प्रकाश के एक लौकिक अंडे का आकार बनाते हुए| इस से हमें आराम, शांति, हल्कापन और ख़ुशी का अनुभव होता है|

इसलिए हम यह एहसास कर पाते हैं कि यह वही जगह है – जहाँ से हम अपनी आत्म-चेतना के साथ जुड़ते हैं – जहाँ हमारी आत्मा के माध्यम से हमारे साथ हमेशा रहने वाले देवदूत विराजते हैं| हम सब परमेश्वर की मूल प्रतियाँ हैं व् सृजन के भाग हैं|

तो आनन्दित रहें……..दर्द से राहत पायें; और हर्ष और उत्थान को महसूस करें; क्योंकि हम जानते हैं कि यही हमारी वास्तविक अस्मिता है| हमारे भीतर की चेतना लगातार हमारी सहायता करती रहती है, कभी धीमे से, तो कभी प्रभावशाली ढंग से, कभी ध्वनि, आवाज़ या फिर छवि द्वारा| जब हमें आवाज़ द्वारा संकेत प्राप्त होता है जिसे हम विचार कहते हैं, वास्तव में वह हमारी आत्म-चेतना से ही आता है |

हमारी आत्म-चेतना हमेशा भलाई के लिए होती है, तो हमारे भीतर स्थित परमेश्वरी-चेतना, भौतिक शरीर के जीवनकाल में लगातार मार्गदर्शन करती रहती है | आत्मा के बिना भौतिक शरीर में जीवन संभव नहीं है | हालाँकि यह स्वतंत्र रूप से काम करती है परन्तु इन दोनों के साथ होने और परमेश्वर के प्रेम के कारण ही हम इस पृथ्वी पर चल पाते हैं |

कभी कभी यह महसूस होता है कि चेतना हमें सलाह दे रही है, किन्तु पूरी तरह से यह समझ में नहीं आता है कि यह आवाज़ आत्म-चेतना की ही है | लेकिन हम जान जाते हैं कि ऐसा कुछ है जो एक अच्छे विचार की तरह प्रतीत नहीं हो रहा है | और इसलिए हम बार-बार यह मनन करते हैं कि जीवन में हमें किस तरीके से या फिर कौन से कदम लेने चाहिए | और यदि हम इसे अनदेखा कर दें, फिर जब भी हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो यही ख्याल मन में आता है कि “काश मैंने पहले ध्यान दिया होता, अपने अंतर-आत्मा की आवाज़ सुनी होती कि यह अच्छा निर्णय नहीं है”|

कभी कभी एक आवाज काफी प्रबल हो सकती है | और यदि हम इस को बहुत ध्यान से सुने तो हमें ज्ञात हो जाएगा कि यह हमारी अंतर-आत्मा की आवाज़ नहीं है| यह आवाज़ आकाश में स्थित किसी उपद्रवी से आ रही है | और इस कारण से हमें सतर्क रहने की आवश्यकता है कि यह सन्देश अथवा विचार कहाँ से आ रहे हैं|

यह वास्तव में बहुत सरल है| जो विचार हमारी आत्म-चेतना से आते हैं वे परमेश्वर के होते हैं, प्रेम के होते हैं और किसी को नुक्सान नहीं पहुंचा सकते हैं| वे केवल हमारी सहायता और उत्थान करना चाहते हैं; ब्रह्मांड से आता हुआ दिव्य प्रेम को देना व बांटना चाहते हैं| जो भी चीज़ें इससे संबंधित नहीं है, उसे हम अस्वीकार कर सकते हैं| यदि आप खुश, संतुष्ट और निश्चिंत रहें, तो यह आसानी से सुलझाया जा सकता है|

यह महत्वपूर्ण है कि आप आराम से बैठ कर ध्यान लगायें , अपनी आत्म-चेतना के साथ जुड़ें और इन सब की आदत बनायें | यह नियमित रूप से करें, चाहे थोड़े ही समय के लिए, तब तक करें जब तक आपको यह महसूस होने लगे कि आपका उत्थान हो रहा है और आपको आराम मिल रहा है| यह भावना आपके शीर्ष से होती हुई ह्रदय तक पहुँचती है| आपके पूरे जीवन, भावनाओं, विचारों और कार्यों में, यह भावना सबसे महत्त्वपूर्ण है …. यदि यह आपको भा रही है तो यह सब के सृजनहार से सीधे आ रही है| यही आपका घर है और यह आपकी वास्तविकता है |

धन्य रहें और हमेशा यह जानिये कि आप धन्य हैं| कई बार आपको आपका मार्ग कठिनाईयों से भरा मिलेगा फिर भी आप प्रफुल्लित रहें| क्योंकि आप इमानदारी से जानते हैं कि जब भी आप पीछे मुड़ कर देखेंगे, तो पायेंगे कि आपने इन कठिन परिस्तिथियों से बहुत कुछ सीखा है|

शांत हो कर रहें,

शांत हो कर रहें,

शांत हो कर रहें |


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