०१.०७.२०१४

हम लौकिक साई बाबा का आह्वान करते हैं, और आज मंगलवार १ जुलाई २०१४ को उनकी उपस्थिति का स्वागत करते हैं|

“मैं यहाँ हूँ – और मैं यहाँ कुछ समय से हूँ, मैं इस घंटी के साथ मज़े ले रहा था … जैसा कि आपने मुझसे कहा था बहुत ज़ोर से बजा रहा था …

आपने मुझसे अपनी उपस्थिति को जताने के लिए इसे ज़ोरों से बजने के लिए कहा था…और वह मैंने किया| क्योंकि आप सभी कह रहे थे कि आपने इससे पहले घंटी को इतनी ज़ोर से बजते हुए नहीं सुना था| इस लिए मैं आप सब लड़कियों के साथ मज़ाक कर रहा हूँ; मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि आपने मुझे यहाँ आने के लिए कहा|

ज्योतिर्मय शरीर में मेरा, अनेक लोगों के समक्ष प्रकट होने की बहुत बातें हो रही हैं; और यह सब सच हैं| और मैं यहाँ इस प्रकार से कई बार आने का विचार कर रहा हूँ| पृथ्वी पर कई लोग हैं जिन्हें यह बात समझ नहीं आएगी – किन्तु आप जैसे लोग बाकि लोगों को समझने में सक्षम होंगे|

और यह मुझे मदद करेगा मेरे वापस आने की ‘दूरी काम करने में’ जो मेरे मानव शरीर ने मृत्यु को प्राप्त कर, राख बनकर बना दी है… … और मैं यहाँ हूँ – या बहुत लोगों के समक्ष हूँगा, जैसा कि मैं कभी मृत्यु को प्राप्त हुआ ही नहीं|

पर मैं एक ज्योतिर्मय शरीर में हूँ जो संसार के पदार्थों से रहित है|

ज्योतिर्मय जीवों का अस्तित्व होता है, वे एक उच्च श्रेणी से आते हैं, वहीँ, जहाँ से मैं आता हूँ| और मैं आपको स्मरण करना चाहता हूँ कि मैं पृथ्वी पर, हर जीव के लिए, ब्रह्माण्डीय प्रेम के साथ आता हूँ| और मेरा कर्त्तव्य एवं इच्छा है कि, जितना हो सके मैं सब की सहायता करूँ – और उन्हें स्वयं को समझने में सहायता करूँ|

एक बार यदि वे समझ जाएँ कि वे वास्तव में कौन हैं – ज्ञान और समझदारी आ जाती है – आप सब शिक्षक बनकर दूसरों को बता सकते हैं और उन्हें समझने में मदद कर सकते हैं| क्या यह आपको उचित लग रहा है?

तो… आज मेरा कार्य सिर्फ जो लोग सुनना चाहते हैं, उन्हें पुन: पुष्टि करना हैं कि मैं एक ज्योतिर्मय शरीर में लौट आया हूँ और मैं यूँही प्राय: आता जाता रहूँगा – कभी बहुत लोगों के पास – कभी कुछ के; यह उसपर निर्भर करता है कि ऊर्जा अधिक कहाँ पर है और मैं कहाँ प्रकट हो सकता हूँ…

प्रार्थनाओं द्वारा मैं सरलता से आ पाउँगा – क्योंकि जब आप प्रार्थना करते हैं तो मुझे पता होता है कि वहां मेरा स्वागत होगा| और मैं उन्ही स्थानों पर जाना चाहता हूँ जहाँ मेरा स्वागत हो|

ऐसा नहीं कि मैं किसी से डरता हूँ, परन्तु वहां जाने का क्या लाभ है जहाँ मेरा आदर सत्कार न हो?

मैं लोगों का भय कम करना चाहता हूँ| भयभीत होने का कोई कारण नहीं है| यदि आप अपनी चेतना को विकसित करते हैं और सर्वशक्तिमान परमात्मा, सबके सृजनकर्ता, से प्रार्थना करते हैं – यही आपको उत्थित चेतना में रहने के लिए चाहिए|

ईसा मसीह ने कई लोगों को दिखाया है – उनकी एक कहानी है कि कैसे उन्होंने मृत्यु को प्राप्त होने के तीन दिन बाद अपने शरीर को पुनर्जीवित कर दिया; एक तरीके से यही तो मैंने भी किया अतिरिक्त इसके कि तीन दिनों की बजाये तीन साल हो गए|

ऐसे होने का भी कुछ कारण है – परन्तु चिंता करने लायक कुछ भी नहीं है| इस का नाता ब्रह्माण्ड से है| तो फिर मैं चाहूंगा कि मेरे वापस आने की सच्चाई को आप स्वीकार करें – मैंने अपना उत्थान कर लिया है; और मैं आशा करता हूँ कि मेरी वापसी पर आप मेरा स्वागत करें |

जैसा कि मैंने अपने भौतिक शरीर में सब को बताया था मैंने किसी के विश्वास को ठेस नहीं पहुँचाया है, वाकई में मैं अपने ९६ वर्ष तक रहना चाहता हूँ| मैं बिलकुल वैसा ही हूँ जैसा कि पृथ्वी पर साईं बाबा के रूप में था बस इतना ही कि अब मेरे पास एक ज्योतिर्मय शरीर है|

तो कृपया, आपका मेरा स्वागत करना ही मेरी सच्ची व हार्दिक इच्छा है| और मैं किसी न किसी तरीके से आप के समक्ष प्रकट हो जाऊँगा| जैसे ही आप द्वार से भीतर आये, आपको मेरी उपस्थिति की अनुभूति हुई, इस कमरे में भी मेरी उपस्थिति को अनुभव किया| और फिर आप में से कुछ लोगों को प्रतीत हुआ कि मैं आपक दिखाई दिया, और यह अच्छा है|
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और घंटी की ध्वनि निस्संदेह, मेरा प्रतिउत्तर था जिससे मैंने दिखा दिया कि मैं यहीं हूँ| जो लोग इस कमरे उपस्थित नहीं थे, उन्हें यह विस्मयकारी प्रतीत हो सकता है …..परन्तु यह ऐसा ही है|

सब को इसका अनुभव करने की आवश्यकता है – तभी सब को ज्ञात होगा – मात्र सुनने से नहीं| यदि वे दूसरे से सुनते हैं तो भी उनको बोध हो जाएगा कि यह सही है या गलत| यह निर्णय आपको करना है| किन्तु…

मैं वापस आ गया हूँ – और परमात्मा के प्रेम के साथ, जो मेरा सबसे महत्वपूर्ण सन्देश है|

मेरे जाने से पहले मैं उन सब को आशिर्वाद देना चाहता हूँ जिन्होंने मुझसे मदद के लिए पत्र लिखे हैं- मैं चाहता हूँ कि वे जाने कि मुझे लोगों के भेजे गए सन्देश हमेशा प्राप्त होते हैं| और मैं उन्हें यह भी बताना चाहूंगा कि अपना प्रेम व मदद मैं उनको उनके आवश्यकता अनुसार वापस भेजता हूँ| कुछ लोग इसे समझ न पाएं परन्तु समय आने पर सब समझ जाएंगे|

तो मुझे यहाँ आमंत्रित करने के लिए, मैं आपको, अपने हृदय से धन्यवाद देता हूँ| धन्यवाद, धन्यवाद मेरे बच्चों, धन्यवाद|


मैं, परमेश्वर आपको आशीर्वाद देता हूँ|”

 


 
आप लौकिक साई बाबा का प्रसारण यहाँ सुन सकते हैं:
 

 

परिशिष्ट

आज जैसे ही लोग यहाँ पर पहुंचे, एक बहुत ही प्रभावशाली सुगंध आ रही थी, हो साईं बाबा के भक्तों को उनके आश्रम से आती हुई अगरबत्ती की महक सी प्रतीत हुई| हम सब उसी विषय पर चर्चा कर रहे थे कि सुगंध बहुत ही प्रभावशाली है और हम समझ गए के साईं बाबा कमरे में उपस्थित हैं| आज हमारे साथ दो अतिथि थे जिनके लिए साईं बाबा नए थे|

ध्यान को सुगमता से प्रारम्भ करने के लिए, मैं प्राय: मंदिर की घंटी का निचला भाग बजाती हूँ ताकि कमरे में स्थित ऊर्जा शांत हो जाए|घंटी बज नहीं रही थी, तो मैंने सुझाव दिया कि हम ३ बार ॐ का जाप करें और फिर मंदिर की घंटी का निचला हिस्सा बजाने की कोशिश करने लगी| अब भी यह बज नहीं रही थी! हमने दोबारा ३ बार ॐ का जाप किया| फिर भी यह नहीं बजी! तो मैंने मन में बाबा को दूरसंवेदन से कहा कि कृपया कर वे घंटी को उच्च स्वर में बजाएं और अपनी उपस्थिति का प्रमाण दें|

मैंने फिर से घंटी के निचले भाग को रगड़ा और वह धीमे से बजने लगी| धीरे-धीरे उसकी ध्वनि तीव्र होती चली गयी और मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि मैं कहीं और ही पहुँच गयी हूँ| घंटी बहुत ही तीव्रता से बजती ही चली गयी! मुझे याद है, कि उस समय मैं यह सोच रही थी कि काश मैं इन सब को रिकॉर्ड कर पाती परन्तु अपना हाथ घंटी से हटा ही नहीं पा रही थी|

फिर वह अकस्मात् ही रुक गयी और मुझे बिजली का एक बहुत ही भारी झटका लगने समान प्रतीत हुआ|

हमने फिर लौकिक साईं बाबा के संचरण में ध्यान देने का निर्णय लिया|

वे जो दो महिलायें आई हुई थीं (वे पहले भी इन बैठकों में आई थीं) उन्होंने स्वीकार किया कि मंदिर की घंटी पहले कभी इतनी ज़ोरों से नहीं बजी थी| और उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि पहले उन्हें साईं बाबा के संचारों पर शंका होती थी, परन्तु आज का देख वे जान गयीं कि वे साईं बाबा ही हैं| उन्होंने यह भी कहा, हालाँकि वे धार्मिक नहीं हैं, फिर भी उन्हें कमरे में साईं बाबा का साक्षात्कार हुआ|

मैंने अपनी पहली किताब, ‘द बुक ऑफ़ लव बाय ए मीडियम’ (जिसे साईं बाबा का आशीर्वाद प्राप्त है), में पुट्टपर्थी स्थित साईं बाबा के आश्रम में उनके साथ हुए अपने अनुभव के बारे में लिखा है: वह किताब के अंतिम अनुच्छेद में लिखा है|

“एक बार की बात है, मंदिर छोड़ने से पहले, मैं उस १०,५०० लोगों की टोली में शामिल होने की कोशिश कर रही थी जो बाबा के पीछे-पीछे चल रही थी, जहाँ बाबा स्वयं मंदिर के साथ वाली इमारत के निर्माण का निरीक्षण कर रहे थे, कि अकस्मात् मैंने अपने आप को बाबा के सामने लगभग ३० फ़ीट की दूरी पर पाया – मैं मार्ग में ही रुक गयी और सोचने लगी कि मैं अपने घुटने के बल बैठूं या नहीं, परन्तु बाबा खड़े हुए मुझे एक टक देखते चले गए और मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो समय थम सा गया हो| मैं हिल ही नहीं पा रही थी| दूरसंवेदन द्वारा उन्होंने मुझे उनके चारों ओर के चिन्हों पर ध्यान देने को कहा – वे एक बहुत ही विशाल घंटे के निकट खड़े थे|”

मुझे विश्वास है कि उनका तब का संदेश (१९९३) एक बड़े चक्र में घूम कर मेरे समक्ष खड़ा है जो उनके ज्योतिर्मय शरीर में वापस आने से लेकर मंदिर के घंटी की ध्वनि द्वारा उनकी घोषणा को दर्शाता है|

मैं साईं बाबा का, अपनी करुणामयी कृपा बनाये रखने के लिए, अपने पूरे मन और आत्मा से धन्यवाद करती हूँ|